यूनेस्को 1994 में 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मनाने की घोषणा हुई तब से हर वर्ष यह दिन विश्व भर में मनाया  जाता है::: सुरजीत अरोड़ा


प्रदीप नरूला (मोगा)


शिक्षक भले ही नौकरी से रिटायर हो पर वह अपने कर्तव्य से रिटायर नहीं हो सकता यह कहना है लेक्चरार सुरजीत अरोड़ा का उनका मानना है कि शिक्षक की जिम्मेदारी ओढ़ते ही उसका जीवन शिक्षा को ही समर्पित हो जाता है। शिक्षक के भीतर यह समर्पण का भाव हो तो उसके लिए उम्र नहीं देखी जाती। शिक्षक यानी गुरु का स्थान जो सबसे ऊंचा माना जाता है और इसके बिना ज्ञान नहीं मिलता । माता-पिता के बाद गुरु ही हमें सही गलत का रास्ता दिखाते हैं। गुरु के उपदेश से जीवन सफल हो जाता है।
71 वर्षीय लेक्चर सुरजीत अरोड़ा ने पत्रकार से विशेष बातचीत करते हुए बताया कि उनका जन्म वर्ष 1953 में मोगा शहर में हुआ और प्राथमिक शिक्षा आर्य स्कूल से ली, डीएम कॉलेज में बीए तथा बीएड कॉलेज से ग्रेजुएशन हासिल करके एम ए अंग्रेजी तथा हिंदी पंजाब विश्वविद्यालय से हासिल करके 1976 में बतौर अंग्रेजी अध्यापक अबोहर के गांव अमरकोट में तैनात हुए। नौकरी लगते उनकी शादी फिरोजपुर निवासी बीए बीएड सीता रानी से हुई।
इसके उपरांत मोगा के गांव नत्थू वाला जदीद सरकारी स्कूल में बतौर लेक्चरार की नियुक्ति हो गई। रिटायरमेंट के बाद आज भी किसी प्राइवेट कॉलेज मैं लेक्चरार की भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में उन द्वारा जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने समेत प्रभावशाली बच्चों को भी तराशने का सिलसिला जारी रखा हुआ है । उन्होंने कहा कि जीवन में सफलता हासिल करने के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक शिक्षक किसी के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह कहना उचित है कि शिक्षक वास्तव में एक विद्यार्थी के दूसरे माता-पिता के रूप में सामने आता है। एक अच्छा शिक्षक हमेशा विद्यार्थियों को तोलकर बोलना सिखाएगा क्योंकि खराब फैसला असफलता का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि कुछ अलग करने के लिए शिक्षा अहम साधन है और जीवन के कठिन समय में चुनौतियों से सामना करने में सहायता करती है तथा शिक्षा की बदौलत सही समय पर सही फैसला करना संभव होता है। रिटायरमेंट के 13 वर्ष बाद भी जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क सेवा दे रहे हैं। ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। पूरे शहर में वह अंग्रेजी के जादूगर के नाम से मशहूर हैं। बच्चे इन्हें ऑलराउंडर सर बुलाते हैं। उनका मानना है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। उन्हें अपने जीवन पर मान है जो कि उन्हें राधा स्वामी बयास के प्रमुख रूहानियत के बादशाह बाबा गुरिंदर सिंह जी महाराज के साथ बचपन में खेलने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि मुझे इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मेरी धर्मपत्नी सीता रानी का पूर्ण सहयोग रहा है और  मिलता रहेगा। उनके मार्गदर्शन के चलते कई विद्यार्थी आज उच्च पदों पर सेवाएं दे रहे हैं। सुरजीत अरोड़ा ने बताया कि जो योग्यताएं उन्हें हासिल हुई है उसको लेकर डिप्टी कमिश्नर मोगा तथा अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है

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